यदि किसी मोहल्ले में आग लगी हो,
तूफ़ानी हवा उसे उजाड़ने की ज़िद में हो,
और ठंड उसे दफ़नाने पे तुली हो,
तो वहाँ कोहरा छा जाता है,
दूर-दूर तक, कोई दिखाई नहीं देता।
मानो कि पूरा मोहल्ला,
एक गुमनाम धुएं की धुंध में खोया हो
होती है तो बस खिड़कियां ,
जो एक-दूसरे को
अपनी बेबसी के किस्से सुनाती हैं।
कि, पहली चिंगारी के उठने पर,
उन्होंने गुहार लगाई थी, और चीखें भी सुनाईं थी,
पर शायद सारा शहर नशे मे धुत था ,
मानो किसी ने सबको भांग पिलाई गई थी ।
और,जब पहली तूफ़ानी हवा आई थी ,
तो खिड़कियाँ चरमराई थीं ,
जैसे किसी कमरे से सिसकने की आवाज़ आई थी,
शायद किसी ने अपनी जान गंवाई थी
और आज , जब ठंड, उसे दफ़नाने को है,
तो खिड़कियाँ टूटकर बिखर गई हैं,,
दीवारें सुन्न हो गई हैं,
और बदबू शहर के हर कोने में फैल गई है|,
एक घने बादल की तरह,
जिसे हटाने के लिए कोई नहीं बचा ,
खिड़कियां तक नहीं|
बेहतरीन लिखा है.
ReplyDeleteThank You
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